Monday, July 25, 2011

बिमल राय की ‘उसने कहा था’


कथाकार चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कथा ‘उसने कहा था’ पर जाने-माने फ़िल्मकार बिमल राय ने इसी नाम से एक फ़िल्म बनाई थी। निर्माता बिमल दा की फ़िल्म को मोनी भट्टाचार्य ने निर्देशित किया था । फ़िल्म मे सुनील दत्त, नंदा, इंद्रानी मुखर्जी, दुर्गा खोटे, राजेन्द्र नाथ, तरूण बोस, रशीद खान व असित सेन ने मुख्य भूमिकाएं निभाईं ।

कहानी के सिनेमाई रूपांतरण की कथा कुछ इस तरह है: --

पंजाब के एक छोटे से शहर मे बालक नंदु अपनी विधवा माता पारो (दुर्गा खोटे) के साथ रहता है। हम देखते हैं कि नंदु की फ़रीदा(बेबी फ़रीदा) से बचपन की दोस्ती है। फ़िल्म की पात्र कमली(बेबी शोभा)अंबाला से अपने माता-पिता के साथ यहां छुट्टियां मनाने आई है।एक घटना मे नंदु बालिका कमली की जान बचाता है, उस दिन से नंदु व कमली अच्छे दोस्त बन जाते हैं । यह मित्रता कमली के अचानक अंबाला लौट जाने से समाप्त हो जाती है ।

कमली और नंदु को बिछडे वर्षों बीत चुके हैं। इस बीच आस-पास और दुनिया मे अनेक परिवर्तन आए। द्वितीय विश्वयुध का समय आ गया ह।बालक नंदु अब युवा गबरू जवान (सुनील दत्त) है। नंदु का ज्यादातर समय खैराती (रशीद खान) और वज़ीरा (राजेन्द्र नाथ) जैसे हमराह मित्रों के साथ गुज़रता है । घर की परवाह से दूर वह सारा दिन यूं ही मित्रो के साथ मटरगस्ती करता रहता है। घर का खर्च मां पारो के प्रयासों से पूरा हो रहा है।

दोस्तों की संगत मे रहते हुए नंदु मे मुर्गे पर जुआ खेलने का शौक पनप जाता है । इस खेल मे बाज़ी लगाने का शौक उसे कभी-कभी कुछ पैसा दे देता है। एक दिन इसी से कमाए रूपए से वह अपनी मां के लिए हार,चश्मा और गर्म शाल खरीदता है। पहले तो पारो खूब खुश होती है, जब सच सामने आया तो वह बेटे को सारा सामान लौटा देती है। घटना नंदु के जीवन मे आने वाले परिवर्तन संकेत के रूप मे देखी जा सकती है ।

हम देखते हैं कि नंदु तांगेवाले खैराती के साथ बाहर निकला हुआ है।राह मे सामने से आ रहे दूसरे तांगेवाले से उसकी झडप हो जाती है । इस मामले तांगे पर बैठी एक युवती से बहस कर बैठता है । यह युवती बडी हो चुकी कमली है । बचपन के दोस्त इतने वर्षो बाद ऐसे ‘अनजान’ मिलेंगे दोनो को ऐसी आशा न थी। समय का चक्र कमली को एक बार फ़िर से बचपन की जगह वापस ले आता है । कहानी मे आगे कमली(नंदा) नंदु (सुनील दत्त) को अपने बिछडे हुए बचपन के दोस्त रूप मे पहचान लेती है। नंदु का दोस्त खैराती कमली को उसके बारे मे बताता है कि यह लफ़ंगा(सुनील दत्त) दरअसल उसके बचपन का दोस्त है।

सच को जानने के बाद कमली के मन मे नंदु के लिए प्रेम हो जाता है।सुख भरे दिन फ़िर से काफ़ूर होने लगते हैं । कमली के चाचा उसकी शादी सूबेदार के बेटे से करने का मन बनाते हैं ।इसी बीच पारो अपने बेटे के लिए कमली का हांथ मांगने आती है । कमली के चाचा इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज़ कर पारो को वापस लौटा देते हैं । नंदु अपनी मां की बेइज़्ज़ती से बहुत आहत होता है ।वह माता व स्वयं को अपमानित व तिरस्कृत पाकर खोया सम्मान वापस अर्जित करने के लिए फ़ौज मे चला जाता है ।

कुछ महीने फ़ौज मे रहने के बाद नंदु वापस छुट्टियों मे घर आता है। इस बीच कमली के घरवाले उसकी सगाई कर देते हैं। कमली की सगाई की खबर सुनकर नंदु तुरंत ही फ़ौज लौट जाता है। रेजीमेंट पहुंचकर वह अपने सीनियर अफ़सर (तरूण बोस) के पास रिपोर्ट करता है। हम देखते हैं कि नंदु के सीनियर विवाह हेतु घर जा रहे हैं। दरअसल उनका रिश्ता कमली से तय हुआ। सीनियर के चले जाने के पर रणक्षेत्र का दायित्त्व नंदु के कांधे आता है, एक ओर वह फ़ौज मे शत्रुओं का सामना कर रहा है तो दूसरी ओर कमली एक अजनबी के साथ बंध रही है ।

प्रेम व डयूटी के दो पाटों मे बंटे नंदु और कमली क्या अपने दायित्त्व का निर्वाह कर सकेंगे ? युध का बडा परिवर्तन दोनों की ज़िंदगी मे क्या बदलाव लाएगा? क्या फ़िल्म का सुखांत अंत होगा? इन प्रश्नों के बीच एक ठोस संकेत मिला: जंग अपने साथ हर समय विषम परिस्थिति लेकर आता है। नंदु व कमली की कहानी के माध्यम से फ़िल्म एक कडवा सच उजागर करती है: जीवन की खुशहाली मे युध एक बडी बाधा है ।

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