Monday, February 27, 2012

आस्कर पुरस्कार 2012




84 वां आस्कर पुरस्कार घोषित किए जा चुके हैं, फ़िल्म ‘द आर्टिस्ट’ एवं ‘हुगो’ पांच-पांच पुरस्कारो के साथ अव्वल रहे हैं । सभी पुरस्कारों का ब्योरा नीचे दिए जा रहा है :

श्रेष्ठ फ़ीचर फ़िल्म
द आर्टिस्ट—विजेता !
द डिसेन्डेनटस
एक्सट्ररिमली लाऊड एंड इन्करेडबली क्लोज़
द हेल्प
हुगो
मनीबाल
मीडनाईट इन पेरिस
द ट्री आफ़ लाईफ़
वारहार्स

श्रेष्ठ निर्देशन
माईकल हाज़नवीकस- द आर्टिस्ट—विजेता !
अलेक्ज़ेंडर पेन- द डिसेन्डेनटस
मार्टिन स्कोर्सिज़ - हुगो
वुडी एलन - मीडनाईट इन पेरिस
टेरेंस मलिक- द ट्री आफ़ लाईफ़


श्रेष्ठ अभिनेता
डेमिन बिकर – अ बेटर लाईफ़
जार्ज क्लूनी- द डिसेन्डेनटस
जीन दार्ज़िन- द आर्टिस्ट— विजेता !
गेरी ओल्डमैन- टिंकर टेलर सोल्ज़र स्पाई
ब्राड पीट- मनीबाल


श्रेष्ठ अभिनेत्री
ग्लेन क्लोज़- एल्बर्ट नोब्स
वायला डेविस- द हेल्प
मेरिल स्ट्रीप – द आईरन लेडी- विजेता !
मिशेल विलियम्स- द वीक वीथ मार्लिन
रूणी मारा- द गर्ल वीथ ड्रेगन टेटु


श्रेष्ठ सहायक अभिनेता
केनिथ बाराग- माई वीक वीथ मार्लिन
जोनाह हिल- मनीबाल
नीक नोल्ट – वारीयर
क्रिस्टोफ़र पलम्मर- बिगनर्स- विजेता !
मैक्स वोन- एक्सट्ररिमली लाऊड एंड इन्करेडबली क्लोज़


श्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री:
बेरिंस बेजो—द आर्टिस्ट
जेसिका केस्टन- द हेल्प
मेलिसा मेकार्थी- ब्राईड्स मेड
जेनट मेकट्यर- अल्बर्ट नोब्स
ओकटविया स्पेंसर- द हेल्प- विजेता !


श्रेष्ठ वृत्तचित्र :
हेल एंड बैक अगेन
इफ़ ए ट्री फ़ाल्स
पराडाईज़ लास्ट 3
पिना
अनडिफ़ीटेड- विजेता !


श्रेष्ठ स्क्रीनपले :
द आर्टिस्ट
ब्राईड्स मेड
मार्ज़िन काल
मीडनाईट इन पेरिस- विजेता !
ए सपेरेशन

श्रेष्ठ प्रेरित स्क्रीनपले:
द डिसेन्डेनटस- विजेता !
हुगो
द आइडियज़ आफ़ मार्च
मनीबाल
टिंकर टेलर सोल्ज़र स्पाई

श्रेष्ठ विदेशी फ़िल्म :
बुलहेड
फ़ुटनोट
इन डार्कनेस
मोनज़ियर लाज़हर
ए सपेरेशन- विजेता !


श्रेष्ठ एनीमेशन फ़िल्म :
ए कैट इन पेरिस
चिको एंड रिटा
कुंफु पंडा 2
पुस इन बुट्सर
रांगो – विजेता !


श्रेष्ठ संगीत :
द आर्टिस्ट – विजेता !
द एडवेंचर्स आफ़ टिनटिन
हुगो
टिंकर टेलर सोल्ज़र स्पाई
वार हार्स


श्रेष्ठ छायांकन :
द आर्टिस्ट
द गर्ल वीथ ड्रेगन टेटु
हुगो- विजेता !
द ट्री आफ़ लाईफ़
वार हार्स

श्रेष्ठ संपादन :
द आर्टिस्ट
द द डिसेन्डेनटस
द गर्ल वीथ ड्रेगन टेटु- विजेता !
मनीबाल
हुगो


श्रेष्ठ कला निर्देशन :
द आर्टिस्ट
हैरी पाटर एंड हेलोज़ 2
हुगो –विजेता !
मीडनाईट इन पेरिस
वार हार्स

श्रेष्ठ लघु वृत्तचित्र :
द बार्बर आफ़ बिर्मिंघम
गाड इज़ बिगर एल्विज़
इनसीटेंड इन न्यु बगदाद
सेविंग फ़ेस – विजेता !
सुनामी एंड चेरी ब्लाशम


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Friday, February 3, 2012

‘सुजीत कुमार’ को याद करते हुए…



सिनेमा प्रशंसक 1960 दशक की हिन्दी फ़िल्मों को आज भी याद करते हैं, इस सिनेकाल के समर्थक ‘लाल बंगला’(1966), एवं ‘एक साल पहले’(1965) जैसी लघु बजट फ़िल्मों के तेज़-तर्रार अभिनेता ‘सुजीत कुमार’ को नहीं भूले हैं । सुपरहिट ‘आराधना’(1969) के गीत ‘मेरी सपनों की रानी’ में ‘राजेश खन्ना’ की जीप में पास बैठा वह शख्स बरबस ही याद आ जाता है ।

आराधना से राजेश खन्ना को ‘सुजीत कुमार’ के रूप में ओन-स्क्रीन साथी मिला, सुजीत उनके साथ ‘हांथी मेरे साथी’ ,‘अमर प्रेम’ , ‘मेहबूबा’ और ‘रोटी’ में आए । इस तरह सुजीत कुमार अमिताभ बच्चन, और धर्मेंद्र जैसे चोटी के अभिनेताओं के साथ भी अनेक बार नज़र आए । अमिताभ (द ग्रेट गैम्बलर, अदालत) एवं धर्मेंद्र (जुगनु, धर्मवीर, चरस, ड्रीम गर्ल,आंखें) उनकी कुछ सफ़ल फ़िल्में रहीं हैं ।

सिने जगत में सुजीत कुमार को ‘भोजपुरी सिनेमा’ के महान अभिनेता के रूप में भी याद किया जाता है, भोजपुरी संसार में ‘बिदेसिया’(1963) का ‘बिदेसी ठाकुर’किरदार मिल का पत्थर’ जैसा है । सुजीत की फ़िल्म ‘दंगल’ ने भोजपुरी सिनेमा की डूबती हुई कश्ती का बेडा पार लगाया,फ़िल्म की बाक्स-आफ़िस सफ़लता ने भोजपुरी को नया जीवन दिया ।
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Top 20 Superstars of Indian Cinema’




दिलीप कुमार

एक निकट संबंधी की सहायता से युवा युसुफ़ (दिलीप कुमार) को पुणा स्थित आर्मी कैंटीन में एक छोटी सी नौकरी मिली । महज 36 रुपए की तन्खवाह पे उन्हें सहायक के तौर रखा गया, दिन –प्रतिदिन के सामान्य कार्यों का जिम्मा था । वह काम से खुश थे, लेकिन वह भी कैंटीन के बंद हो जाने से जाता रहा । काम छुटा तो पिता ‘गुलाम सरवर खान’ के फ़ल व्यापार की ओर ध्यान दिया, जहां वह एक बार कारोबार के सिलसिले में नैनीताल पहुंचे । नैनीताल में उस समय देविका रानी एवं निर्देशक अमिय चक्रवर्ती आगामी फ़िल्म’ ज्वार भाटा’ के लिए उपयुक्त लोकेशन की खोज में आए थे। युसुफ़ को तब देविका रानी के बारे में पता नहीं था, देविका जी से अनजान वश टकराने से भाग्य बदला।

युसुफ़ को फ़िल्म में फ़िल्म में काम करने का प्रस्ताव मिला, सहमति में सर हिलाते हुए जवाब दिया। देविका जी ने युसुफ़ को मलाड स्थित ‘बाम्बे टाकीज़’ दफ़्तर में मिलने को कहा। कुछ दिनों तक युसुफ़ वहां नहीं जा सके,फ़िर बुलावा आया और इस बार उन्होंने बाम्बे टाकीज़ के साथ 500 रुपए की तन्खवाह पर काम स्वीकार कर लिया । ‘ज्वार भाटा’ से युसुफ़ साहब(अब से ‘दिलीप कुमार’ के रूप में जाने गए) ने फ़िल्मों में कदम रखा। व्यापार में मशगुल युसुफ़ के पिता फ़िल्मवालों को पसंद नहीं करते थे, गुलाम सरवर को तब शायद ताज्जुब हुआ होगा जब उन्होने पत्रिकाओं में युसुफ़ की तस्वीरें देखी थीं । पुत्र की सिने व्यक्तित्व को स्वीकार करने में उन्हें वक्त लगा । सन 50 दशक के आरंभ तक युसुफ़(दिलीप कुमार) हिन्दी सिनेमा के एक परिचित शख्सियत हो चुके थे, उनकी पहचान देश के महत्त्वपूर्ण ‘रोमांटिक’ हीरो रुप में स्थापित हुई । फ़िल्म कैरियर में यादगार रोमांटिक किरदार निभाने वाले दिलीप कुमार निजी जीवन में प्रेम की ओर आकर्षित थे ?


सितारा देवी के शब्दों में युसुफ़ साहब को निजी जीवन में भी प्यार हुआ, अभिनेत्री कामिनी कौशल उन्हें सबसे अधिक प्रिय थीं । स्क्रीन पर दिलीप कुमार-कामिनी कौशल के युगल ने कुछ स्मर्णीय रोमांटिक फ़िल्में --नदिया के पार, शहीद, शबनम, आरजू से दर्शकों को मोह लिया । मसूरी की कामिनी कौशल(उमा कश्यप) ने चेतन आनंद की बहुचर्चित फ़िल्म ‘नीचा नगर’ से फ़िल्मी सफ़र शुरु किया, फ़िल्म प्रतिष्ठत अंतराष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाली पहली भारतीय फ़िल्म है । दिलीप कुमार व कामिनी जी के बीच मधुर संबंध ‘नदिया के पार’ समय बढें, निजी जीवन में भी दिलीप उन्हें पसंद करने लगे । कामिनी कौशल के परिवारिक कारणों से यह प्रेम कहानी ‘बिछोह’ दर्द में समाप्त हुई । पिछली बातों को भूलने की कोशिश कर रहे अभिनेता के जीवन में ‘मधुबाला’ का प्रवेष हुआ , मधुबाला के आने से दिलीप की जिंदगी में प्यार लौटा तो जरूर लेकिन तकदीर ने साथ नहीं निभाया । दरअसल मधुबाला के पिता ‘अताउल्ला खान’ दिलीप कुमार के साथ नज़दिकियों से खफ़ा थे । उन्हें लगा कि गर कमाने वाली कहीं चली गई फ़िर घर को कौन देखेगा?


गौरतलब है कि बडे परिवार में मधु अकेली आमदनी का ज़रिया थीं । इस डर के वजह से पिता ने मधुबाला को दिलीप साहेब के साथ ‘नया दौर’ मे काम करने से रोक दिया, यह रोल बाद में वैजयंतीमाला ने अदा किया । इसके बाद दोनों ‘मुगल-ए-आज़म’(1960) में ही एक साथ काम कर सके, उस समय दिलीप कुमार की मधुबाला से बातचीत बंद थी। कमरुद्दीन आसिफ़ की इस ऐतिहासिक फ़िल्म में दिलीप-मधुबाला के प्रेम को एक तरह से महान श्रधांजलि दी ।

कामिनी कौशल और मधुबाला के कडवे अनुभव बर्दाश्त कर चुके दिलीप अब प्रेम के मामले में थोडे संभल कर चलने लगे, लेकिन दिल में शायद अब भी प्रेम की विजय का विश्वास था । कहा जाता है कि वह ‘वहीदा रहमान’ को लेकर गंभीर हुए, अब वह प्रेम में असफ़ल नहीं होना चाहते थे । सिल्वर स्क्रीन पर दिलीप – वहीदा रहमान ने ‘राम और श्याम’ से जादू बिखेरा, एक बार फ़िर प्रेम ने दिलीप को चुना । वहीदा रहमान को मन ही मन पसंद करने लगे , लेकिन दिल बात कहने से पहले ही ‘सायरा बानो’ सुनामी ने दिलीप को जग से छीन लिया।

नोट: पेगुईन से प्रकाशित नवीन पुस्तक ‘Top 20: Superstars of Indian Cinema’ संपादक—भाईचंद पटेल। पुस्तक में ‘दिलीप कुमार’ को ‘हिन्दी सिनेमा’ के महानतम हीरो के रूप में सम्मानित किया गया है ।





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