Friday, February 3, 2012

Top 20 Superstars of Indian Cinema’




दिलीप कुमार

एक निकट संबंधी की सहायता से युवा युसुफ़ (दिलीप कुमार) को पुणा स्थित आर्मी कैंटीन में एक छोटी सी नौकरी मिली । महज 36 रुपए की तन्खवाह पे उन्हें सहायक के तौर रखा गया, दिन –प्रतिदिन के सामान्य कार्यों का जिम्मा था । वह काम से खुश थे, लेकिन वह भी कैंटीन के बंद हो जाने से जाता रहा । काम छुटा तो पिता ‘गुलाम सरवर खान’ के फ़ल व्यापार की ओर ध्यान दिया, जहां वह एक बार कारोबार के सिलसिले में नैनीताल पहुंचे । नैनीताल में उस समय देविका रानी एवं निर्देशक अमिय चक्रवर्ती आगामी फ़िल्म’ ज्वार भाटा’ के लिए उपयुक्त लोकेशन की खोज में आए थे। युसुफ़ को तब देविका रानी के बारे में पता नहीं था, देविका जी से अनजान वश टकराने से भाग्य बदला।

युसुफ़ को फ़िल्म में फ़िल्म में काम करने का प्रस्ताव मिला, सहमति में सर हिलाते हुए जवाब दिया। देविका जी ने युसुफ़ को मलाड स्थित ‘बाम्बे टाकीज़’ दफ़्तर में मिलने को कहा। कुछ दिनों तक युसुफ़ वहां नहीं जा सके,फ़िर बुलावा आया और इस बार उन्होंने बाम्बे टाकीज़ के साथ 500 रुपए की तन्खवाह पर काम स्वीकार कर लिया । ‘ज्वार भाटा’ से युसुफ़ साहब(अब से ‘दिलीप कुमार’ के रूप में जाने गए) ने फ़िल्मों में कदम रखा। व्यापार में मशगुल युसुफ़ के पिता फ़िल्मवालों को पसंद नहीं करते थे, गुलाम सरवर को तब शायद ताज्जुब हुआ होगा जब उन्होने पत्रिकाओं में युसुफ़ की तस्वीरें देखी थीं । पुत्र की सिने व्यक्तित्व को स्वीकार करने में उन्हें वक्त लगा । सन 50 दशक के आरंभ तक युसुफ़(दिलीप कुमार) हिन्दी सिनेमा के एक परिचित शख्सियत हो चुके थे, उनकी पहचान देश के महत्त्वपूर्ण ‘रोमांटिक’ हीरो रुप में स्थापित हुई । फ़िल्म कैरियर में यादगार रोमांटिक किरदार निभाने वाले दिलीप कुमार निजी जीवन में प्रेम की ओर आकर्षित थे ?


सितारा देवी के शब्दों में युसुफ़ साहब को निजी जीवन में भी प्यार हुआ, अभिनेत्री कामिनी कौशल उन्हें सबसे अधिक प्रिय थीं । स्क्रीन पर दिलीप कुमार-कामिनी कौशल के युगल ने कुछ स्मर्णीय रोमांटिक फ़िल्में --नदिया के पार, शहीद, शबनम, आरजू से दर्शकों को मोह लिया । मसूरी की कामिनी कौशल(उमा कश्यप) ने चेतन आनंद की बहुचर्चित फ़िल्म ‘नीचा नगर’ से फ़िल्मी सफ़र शुरु किया, फ़िल्म प्रतिष्ठत अंतराष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाली पहली भारतीय फ़िल्म है । दिलीप कुमार व कामिनी जी के बीच मधुर संबंध ‘नदिया के पार’ समय बढें, निजी जीवन में भी दिलीप उन्हें पसंद करने लगे । कामिनी कौशल के परिवारिक कारणों से यह प्रेम कहानी ‘बिछोह’ दर्द में समाप्त हुई । पिछली बातों को भूलने की कोशिश कर रहे अभिनेता के जीवन में ‘मधुबाला’ का प्रवेष हुआ , मधुबाला के आने से दिलीप की जिंदगी में प्यार लौटा तो जरूर लेकिन तकदीर ने साथ नहीं निभाया । दरअसल मधुबाला के पिता ‘अताउल्ला खान’ दिलीप कुमार के साथ नज़दिकियों से खफ़ा थे । उन्हें लगा कि गर कमाने वाली कहीं चली गई फ़िर घर को कौन देखेगा?


गौरतलब है कि बडे परिवार में मधु अकेली आमदनी का ज़रिया थीं । इस डर के वजह से पिता ने मधुबाला को दिलीप साहेब के साथ ‘नया दौर’ मे काम करने से रोक दिया, यह रोल बाद में वैजयंतीमाला ने अदा किया । इसके बाद दोनों ‘मुगल-ए-आज़म’(1960) में ही एक साथ काम कर सके, उस समय दिलीप कुमार की मधुबाला से बातचीत बंद थी। कमरुद्दीन आसिफ़ की इस ऐतिहासिक फ़िल्म में दिलीप-मधुबाला के प्रेम को एक तरह से महान श्रधांजलि दी ।

कामिनी कौशल और मधुबाला के कडवे अनुभव बर्दाश्त कर चुके दिलीप अब प्रेम के मामले में थोडे संभल कर चलने लगे, लेकिन दिल में शायद अब भी प्रेम की विजय का विश्वास था । कहा जाता है कि वह ‘वहीदा रहमान’ को लेकर गंभीर हुए, अब वह प्रेम में असफ़ल नहीं होना चाहते थे । सिल्वर स्क्रीन पर दिलीप – वहीदा रहमान ने ‘राम और श्याम’ से जादू बिखेरा, एक बार फ़िर प्रेम ने दिलीप को चुना । वहीदा रहमान को मन ही मन पसंद करने लगे , लेकिन दिल बात कहने से पहले ही ‘सायरा बानो’ सुनामी ने दिलीप को जग से छीन लिया।

नोट: पेगुईन से प्रकाशित नवीन पुस्तक ‘Top 20: Superstars of Indian Cinema’ संपादक—भाईचंद पटेल। पुस्तक में ‘दिलीप कुमार’ को ‘हिन्दी सिनेमा’ के महानतम हीरो के रूप में सम्मानित किया गया है ।





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